हरियाणा
यमुनानगर समाचार क्यारी (सुशील पंडित)
देश में पहली बार कोरोना संक्रमण मामले ने 30 जनवरी को दस्तक दी लेकिन उस समय सरकार ने यह सामान्य तौर पर ही लिया यह सोचना सरकार व जनता का स्वाभाविक भी था क्योंकि इस प्रकार की आपदा वर्तमान के शासन व देश के लिए अनुभव और यथार्त्थ से बिल्कुल ही अलग चुनौती रही होगी। जानकारों के अनुसार लगभग100 साल पूर्व इस प्रकार विषम परिस्थितियों का सामना भारत की जनता को करना पड़ा था। 24 मार्च को भारत बंद यानि ट्रॉयल के रूप लॉक डाउन हुुुआ 25 मार्च से औपचारिक घोषणा करने का पश्चात भी जनता ने इस महामारी को मानसिक रूप से ग्रहण नही किया जैसे-जैसे कोरोना संक्रमितों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है उसी दृष्टि से इस बीमारी ने जहां शारीरिक व मानसिक रूप से हमें अपनी चपेट में लिया है उसी प्रकार हर वर्ग आर्थिक मंदी की भयव्य स्थिति से भी जूझ रहा है।
सरकार अपने स्तर पर इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए दिन रात प्रयासरत है परन्तु जैसे जनता ने लॉक डाउन के चार चरणों को पार किया और अनलॉक वन में प्रवेश किया है कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में भी अपेक्षा से अधिक बढ़ोतरी हो रही है। देश में लगभग ढाई लाख कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए हैं हजारों की संख्या में लोग कोरोना का ग्रास बन चुके हैं। भारत ने कोरोना संक्रमण की दृष्टि से स्पेन को भी पीछे छोड़ दिया विश्व में हमारा देश सर्वाधिक प्रभावित देशों की सूची के आधार से छठे स्थान में प्रवेश कर चुका है।
अब देश की जनता के मन में व्यथित करने वाले प्रश्न उठ रहे हैं कि क्या लॉक डाउन करना इस महामारी से निजात पाने का एकमात्र विकल्प है? क्या हालात और बिगड़ने पर देश स्वास्थ्य सुविधाओं से परिपूर्ण है? विचार करने वाली बात है कि 25 मार्च से लेकर अब तक देश ने मानिसक शांति के अलावा क्या क्या खोया है? गौरतलब है कि लॉक डाउन के दौरान सभी प्रकार के उद्योग, होटल इंडस्ट्री, निजी संस्थान, विमान सेवाएं, व अन्य प्रमुख सर्विस सेक्टर के कामकाज ठप्प रहे और कुछ तो अभी भी बन्द ही है। भारतीय अर्थव्यवस्था में जीडीपी की दृष्टि से इन सभी का योगदान लगभग 55 प्रतिशत है लाखों लोगों की जीविका इन विकट परिस्थितियों में दाव पर लगी हुई है। देश पर आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न होने पर सबसे पहले इसका भुगतान वास्तविक रूप से मिडल क्लास व लोअर मिडल क्लास को करना पड़ता है आर्थिक पैकेज में भी यह दोनों श्रेणियां उपेक्षित ही रह जाती है। सरकार द्वारा घोषित किसी भी योजना या पैकेज से यह वर्ग कोसों दूर होता है। बहरहाल जो भी हो इस कोरोना काल लगभग सभी वर्ग विभिन्न प्रकार की परेशानियों से लड़ रहे हैं।
बात यदि भारत की अर्थव्यवस्था की जाए तो वास्तविकताओं के आधार पर कोविड19 से पहले भी यह बहुत अच्छी नहीं थी। भारतीय अर्थव्यवस्था नॉमिनल जीडीपी के आंकड़ों पर 45 वर्ष के न्यूनतम स्तर पर थी रियल जीडीपी के आधार पर 11 साल के न्यूनतम स्तर थी बेरोजगारी पिछले 45 साल में सबसे अधिक यह सभी आंकड़े कोरोना काल की विषम परिस्थितियों से पूर्व के है। वर्तमान में आए आर्थिक संकट का संज्ञान लेने के लिए देश की व्यवस्था के पिछले 2 साल के आंकड़ों पर नजर दौड़ाने से यह स्प्ष्ट हो जाता है कि मौजूदा हालात में हम आर्थिक रूप से कहा खड़े हैं। कोरोना में जहाँ सर्ववर्ग प्रताड़ित है वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था “रिवर्स माइग्रेशन”की मार झेलने के लिए भी तैयार हो गई है। मजदूर वर्ग के लोग शहरों से वापिस गाँव की ओर लौट रहे हैं जिससे उद्योग जगत से जुड़े वर्ग को भी भविष्य में अनेक प्रकार की दिक़्क़तों का सामना करना पड़ सकता है।
कोरोना के कहर के चलते (सीएमआईई)’सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी ने बहुत ही डरावने आंकड़े जारी किए हैं जिनके अनुसार लॉक डाउन के प्रथम चरण से लेकर अब तक 12 करोड़ लोगों के रोजगार चले गए हैं और रोजगार प्रदान करने वाले लोग भी इस संकट से जूझ रहे हैं। कोरोना काल से पहले भारत मे कुल रोजगार आबादी 40.4 करोड़ थी जो वर्तमान में घटकर 28.5 करोड़ रह गई है। यदि डब्लूएचओ के की विश्लेषण पर दृष्टि डाले तो कोरोना का दौर अभी इससे भी बुरा आना बाकी है यानि हमारी अर्थव्यवस्था का क्या हाल हो सकता है यह कहना अंसभव होगा। इतना जरूर स्पष्ट हो जाता है कि अर्थव्यवस्था में मांग एवं आपूर्ति के अभाव के साथ बेरोजगारी का भीषण संकट आ सकता है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सम्बोधन में कहा था “जान और जहान” दोनों को बचाने के लिए सम्पूर्ण राष्ट्र को एकजुट होना होगा और इस पर जनता ने यथासंभव प्रयास भी किया लेकिन सरकार के द्वारा भी इस कथन को वास्तविक स्वरूप देने की अति आवश्यकता है।
लॉक डाउन इस वैश्विक महामारी एकमात्र हल नहीं हो सकता हमें अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं में भी और अधिक कार्य करने की जरूरत है। शहरी हो या ग्रामीण क्षेत्र सभी मे निरन्तर कोरोना संक्रमण जाँच होनी चाहिए जाँच प्रक्रिया में स्वास्थ्य सहायकों के साथ अनुभवी चिकित्सकों की नियुक्ति की जाए। आर्थिक सहायता के लिए केवल पैकेज की घोषणा करना या प्रदान करना पर्याप्त नहीं होगा अपितु आर्थिक मंदी से सम्पूर्ण समाज को उभारने के लिए धरातल के पटल पर वास्तविक स्थिति को देखते हुए कार्य करने की अति आवश्यकता है। कोरोना एक अदृश्य राक्षस की भांति देश के सामने मुँह खोले खड़ा है इस संदर्भ में समाज व सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा। राष्ट्रहित सर्वोपरि मान कर ही हम सब इस आर्थिक और शारीरिक संकट से पार पा सकते हैं।
