केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा गरीब सवर्णों के दिए गए 10 फीसद आरक्षण के मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विरोध पर पहला सवाल खड़ा होता है कि लालू प्रसाद यादव की पार्टी ने ऐसा क्यों किया? क्या अगले चुनाव में उन्हें इसका फायदा मिलेगा? उनके समर्थक क्या गोलबंद होकर राजद की जीत में सहायक बनेंगे? सवाल यह भी था कि पांच-दस साल पहले राजद के घोषणा पत्र में सवर्णों के लिए 10 फीसद आरक्षण के प्रस्ताव को शामिल करने वाले लालू के रणनीतिकारों ने मौका आने पर यू-टर्न क्यों लिया? और अगर एक बार स्टैंड ले लिया तो बाद में कन्फ्यूज क्यों हो गए? राज्यसभा में मनोज झा ने झुनझुना बजाकर केंद्र सरकार की जिस आरक्षण व्यवस्था को खारिज कर दिया, उसे महज दो दिन बाद ही रघुवंश प्रसाद सिंह ने पलट क्यों दिया?
शुरुआत आखिरी लाइन से ही करते हैं। रघुवंश प्रसाद का बयान बताता है कि कांग्रेस, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के साथ चुनाव मैदान सजा रहे राजद के रणनीतिकारों को कुछ घंटे बाद ही अहसास हो गया कि अब मंडल-कमंडल की राजनीति का युग नहीं रहा। जिस धारा की राजनीति करके लालू ने सत्ता को 15 सालों तक अपने कब्जे में रखा, अब उसका दौर खत्म हो गया है।
दरअसल, 80 के दशक तक बिहार में सत्ता के शीर्ष पर सवर्णों का बोलबाला था। सियासत के पहिए उन्हीं के आसपास घूमते थे। किंतु मंडल कमीशन की सिफारिशों ने सारे समीकरण को पलट दिया, जिसकी फसल लालू की राजनीति ने अगले डेढ़ दशक तक काटी। लालू ने पिछड़ों में सत्ता और सियासत की भूख जगाई। उन्हें प्रोत्साहित किया। सपने दिखाए और खुद के लिए रास्ते बनाए।
समाजशास्त्र के हिसाब से सत्ता और सियासत का एक चक्र जब पूरा हो गया और मंडल का उभार थम गया तो लालू की सत्ता को पिछड़ों से ही चुनौती मिलने लगी। नीतीश कुमार की कोशिशों से लालू पार नहीं पा सके और सत्ता में भागीदारी के लिए जगह खाली करनी पड़ी।
उसके बाद सवर्ण सियासत धीरे-धीरे हाशिये की ओर प्रस्थान कर गई। अब सवर्ण, वोट बैंक से ज्यादा नहीं रह गए हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे लालू के सवर्ण सिपहसालारों को जब वोट की चोट का डर सताने लगा तो राजद के स्टैंड की दोबारा समीक्षा की गई। रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह को नुकसान की आशंका दिखने लगी। रघुवंश का चुनाव क्षेत्र वैशाली है और जगदानंद का बक्सर। दोनों क्षेत्रों में सवर्ण वोटरों की अच्छी तादाद है। जाहिर है, अपने वोट बैंक की चिंता में राजद के रणनीतिकारों को पलटना पड़ा।