निर्दलीय प्रत्याशियों को जम्मू कश्मीर के मतदाता नहीं देते अहमियत

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अभी तक जम्मू कश्मीर में होने वाले लोकसभा चुनावों में सिर्फ 6 निर्दलीय प्रत्याशियों को ही जम्मू कश्मीर के मतदाताओं ने सांसद के रूप में चुना है और इस संदर्भ में यह बात नहीं भूली जा सकती कि जिन निर्दलीय प्रत्याशियों को मतदाताओं ने सांसद पद के लिए चुना उन्हें उनके व्यक्तित्व के आधार पर ही चुना गया था। इसमें सबसे आगे बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख के मतदाता रहे हैं जिन्होंने चार बार-2009, 2004, 1989 तथा 1980 में- निर्दलीय प्रत्याशी को जीताया और जम्मू तथा श्रीनगर के मतदाताओं ने एक-एक बार-क्रमशः 1977 तथा 1971 में ही निर्दलीय प्रत्याशी को चुना था।

जो प्रत्याशी इन चुनावों में निर्दलीय रूप से विजयी हुए थे वे हैंः 1971 में श्रीनगर की सीट से शमीम अहमद शमीम, 1977 में जम्मू की सीट से ठाकुर बलदेव सिंह, 2009, 2004, 1989 तथा 1980 में लद्दाख की सीट से क्रमशः हसन खान, थुप्स्टन छेवांग, मुहम्मद हसन कमांडर और पी नामग्याल हैं।1996 के पहले के तीन चुनावों को ही अगर पैमाना माने तो करीब 138 निर्दलीय प्रत्याशियों ने राज्य की छह संसदीय सीटों पर अपने भाग्य को आजमाया था और इन तीन चुनावों के दौरान सिर्फ दो को, लद्दाख में, छोड़ सभी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। मजेदार बात यह है कि इन तीन चुनावों में जितने निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाने में कूदे थे उस संख्यां की आधी संख्यां से भी अधिक ने 1996 के चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई थी।

आज तक सबसे अधिक निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्यां 1989 के चुनावों में 49 थी। अगर आंकड़ों को देखा जाए तो जैसे जैसे चुनावों की संख्यां बढ़ती गई ठीक उसी प्रकार किस्मत आजमाने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्यां में भी वृद्धि होती गई। वर्ष 1980 तथा 1984 में क्रमशः 20 तथा 23 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में रह गए थे। लेकिन यह बात भी सच है कि अगर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव न भी जीत पाए हों लेकिन वे राज्य की चार सीटों पर दूसरे स्थान पर रहते आए हैं। और इस प्रकार का रिकार्ड बनाने में बारामुल्ला संसदीय क्षेत्र सबसे आगे है जहां पिछले सभी चुनावों में सिर्फ 1967 के चुनावों को छोड़ प्रत्येक बार स्वतंत्र प्रत्याशी ही दूसरे स्थान पर रहा है।

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