सपा और बसपा के गठबंधन में तीसरा साथी रालोद है। लोकसभा चुनाव में तीनों दलों का ही नहीं बल्कि जाट, मुस्लिम और दलित समीकरण का भी इम्तिहान होगा। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन की तस्वीर भी इसी फार्मूले से साफ होगी। चुनाव प्रचार में बसपा अध्यक्ष मायावती के अगले कदम पर दलित वोटरों की निगाह टिकी हुई है। इसकी वजह यह है कि रालोद और बसपा के बीच सीधे तौर पर गठबंधन की कोई बात नहीं हुई है। कैराना उपचुनाव में मायावती प्रचार से दूर रही। देखने वाली बात यह होगी जाट मतदाता सपा और बसपा के प्रत्याशियों को कितने वोट देते हैं।
सियासी दलों ने लोकसभा चुनाव की तैयारी को तेज कर दिया। दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर ही निकलता है। प्रदेश में भाजपा से मुकाबला करने के लिए सपा, बसपा और रालोद एक साथ चुनाव लड़ने जा रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि तीनों दलों के इस गठबंधन में पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट, मुस्लिम और दलित समीकरण के संकेत मिल रहे हैं। साल 2019 लोकसभा चुनाव में यह फार्मूला कामयाब रहा तो प्रदेश में साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी इसे आजमाए जाने की संभावना जताई जा रही है।