संसद राष्ट्र की सर्वोच्च संस्था है। देश का भविष्य संसद के चेहरे पर लिखा होता है। यदि वहां भी शालीनता एवं सभ्यता का भंग होता है तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के गौरव का आहत होना निश्चित है। सात दशक के बाद भी भारत की संसद सभ्य एवं शालीन नहीं हो पाई है। ये स्थितियां दुर्भाग्यपूर्ण एवं विडम्बनापूर्ण ही कही जायेंगी। एक बार फिर ऐसी ही त्रासद स्थितियों के लिये लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को शीतकालीन सत्र में दो दिन में कुल 45 सांसदों को सत्र की बची हुई बैठकों से निलंबित करने का कठोर फैसला लेना पड़ा है। इस तरह का कठोर निर्णय हमारे सांसदों के आचरण पर एक ऐसी टिप्पणी है, जिस पर गंभीर चिन्तन-मंथन की अपेक्षा है। निश्चित ही छोटी-छोटी बातों पर अभद्र एवं अशालीन शब्दों का व्यवहार, हो-हल्ला, छींटाकशी, हंगामा और बहिर्गमन आदि घटनाओं का संसद के पटल पर होना दुखद, त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण है। इससे संसद की गरिमा एवं मर्यादा को गहरा आघात लगता है। ऐसे सांसदों को निलम्बित किया ही जाना चाहिए।
सांसदों के निलंबन की घटनाएं रह-रह कर होती रहती हैं। निलम्बन की सबसे बड़ी घटना वर्ष 1989 में हुई, तब इंदिरा गांधी की हत्या की जांच से संबंधित ठक्कर आयोग की रिपोर्ट संसद में रखे जाने के मुद्दे पर हुए हंगामे के दौरान तत्कालीन लोकसभाध्यक्ष द्वारा 63 सांसदों को निलंबित किया गया। अगस्त 2015 में कांग्रेस के 25 सदस्यों को काली पट्टी बांधने एवं कार्यवाही बाधित करने पर निलंबित किया था। फरवरी 2014 में लोकसभा के शीतकाल सत्र में 17 सांसदों को 374 (ए) के तहत निलंबित किया गया था। अगस्त 2013 में मानसून सत्र के दौरान कार्यवाही में रुकावट पैदा करने के लिए 12 सांसदों को निलंबित किया था। इन निलंबन घटनाओं को छोड़ दें तो हाल के वर्षों में संख्या के हिसाब से सांसदों को निलंबित करने का यह आंकड़ा वाकई बेहद चौंकाने वाला है। निलंबित किए गए सांसदों में 31 अन्नाद्रमुक के, 13 टीडीपी के और एक वाईएसआर कांग्रेस के टिकट से जीती असंबद्ध सांसद हैं। निलंबित सांसदों में टीडीपी के वह शोक गजपति राजू भी हैं, जो कभी इसी सरकार में नागर विमानन मंत्री हुआ करते थे। शीत सत्र की शुरुआत से ही सांसद लोकसभाध्यक्ष के आसन तक पहुंचने, सदन की कार्यवाही में विघ्न डालने और कागज की पर्चियां फाड़कर फेंकने का काम कर रहे थे। अन्नाद्रमुक दरअसल कर्नाटक सरकार द्वारा कावेरी पर बनाए जाने वाले बांध का विरोध कर रही है, तो टीडीपी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रही है। लेकिन इसके लिए उन्होंने जो तरीका अपनाया, वह आपत्तिजनक था।