भारतीय एयरफोर्स के विंग कमांडर अभिनंदन तो दो दिन में पाकिस्तान से रिहा हो गए। लेकिन 1971 भारत-पाक युद्ध के दौरान पकड़े गए एयर कमोडोर जेएल भार्गव को एक साल तक पाकिस्तान की यातना झेलने के बाद छोड़ा गया था। पंचकूला के सेक्टर 20 में रहने वाले भार्गव आज भी साल 1971 की पांच दिसंबर की तारीख नहीं भूले हैं।

उनके मुताबिक युद्ध के दौरान एयरक्राफ्ट क्रैश होने के बाद वे पैराशूट से नीचे कूदे। जब वे नीचे आए तो उन्हें पता नहीं था कि वे भारत की जमीं पर हैं या दुश्मन के क्षेत्र में। जब उन्हें पता चला कि वे पाकिस्तान में हैं तो वे बिलकुल नहीं डरे और चलते रहे। मीलों चलने के बाद उन्हें एक झोपड़ी दिखाई पड़ी। वहां पर अपना नाम मंसूर अली बताया और पीने को पानी मिला।
कलमा नहीं पढ़ने पर पकड़े गए थे
उसके बाद वे फिर निकल पड़े। उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान पायलट को एक सरवाइवर किट, एक पिस्तौल और कुछ पाकिस्तानी रुपये दिए जाते हैं। काफी थके होने के कारण वे खेत की एक पगडंडी पर सो गए। कुछ राहगीर उन्हें अपने वतन का समझकर अपने साथ ले गए, लेकिन वहां पर एक स्कूल हेडमास्टर को शक हो गया।
वतन लौटने के बाद ये रहा मलाल
भार्गव ने बताया कि कई वर्षों तक उन्हें यातनाएं झेलनी पड़ी थीं। इस दौरान वे स्पाइन इंजरी का शिकार हो गए। भयंकर दर्द की वजह से उनका चलना फिरना मुश्किल हो गया था। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनका कहना है कि वतन लौटने के बाद वे फिर एयरफोर्स का जहाज नहीं उड़ा पाए, जो आज भी उनके दिल में मलाल है।
उन्होंने बताया कि पाकिस्तान ने उन्हें इस आस पर छोड़ा था कि इंदिरा गांधी पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को रिहा करेगी। उस दौरान पाकिस्तान ने भारत के 12 पायलटों, 6 आर्मी अफसरों सहित 600 जवानों को रिहा किया था। अभिनंदन की रिहाई से वे काफी खुश हैं कि भारत की कूटनीति काम आई, जो मात्र दो दिन में वह रिहा हो गए।