विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई के नाम पर पाकिस्तान का खेल समझना मुश्किल नहीं है। शुरुआत से ही पाकिस्तान ने अभिनंदन को लेकर दोहरा रुख अपनाया। एक तरफ तो उसने घायल अभिनंदन की दुनिया के सामने नुमाइश करवा दी, फिर मानवता की दुहाई देते हुए उसे अगले ही दिन रिहा करने का एलान कर दिया। पाकिस्तान की संसद में पीएम इमरान खान ने सद्भावना के नाम पर अभिनंदन को भारत को सौंपने का एलान किया।
लेकिन इस पूरे मामले में पाकिस्तान की मंशा को समझना मुश्किल नहीं है। उसने भारत को दिखाने की कोशिश की है कि भले ही अभिनंदन को वह छोड़ रहा है, लेकिन अपने ही तरीके से। सूत्रों के मुताबिक, भारत ने पहले ही पाकिस्तान को कह दिया था कि वह चाहता है कि हवाई मार्ग से अभिनंदन को लाया जाए। लेकिन पाकिस्तान ने बात नहीं मानी और वाघा बॉर्डर पर ही पायलट को भारत को सौंपने पर अड़ा रहा।
दरअसल, पाकिस्तान इस मौके को अपने पक्ष में भुनाना चाहता था। वह दुनिया, भारत और अपनी जनता को बताना चाहता था कि अभिनंदन की रिहाई भले ही बिना शर्त हो रही हो, लेकिन तरीका उसका अपना ही होगा। ऐसा तरीका जो बेहद अभद्र और भड़काऊ है। इमरान खान कहते रहे कि वह सद्भावना के तहत पायलट को छोड़ रहे हैं, लेकिन जिस तरीके से इसे अंजाम दिया गया वह पाकिस्तान के असभ्य चेहरे को फिर उजागर कर गया।
शायद भारत को पड़ोसी देश की मंशा का पहले से ही अंदाजा था, यही वजह है कि उसने वाघा बॉर्डर पर बीटिंग रिट्रीट समारोह रोकने का फैसला किया। ये समारोह उस दिन भी हुआ था जिस दिन पुलवामा में 40 जवानों ने अपनी शहादत दी थी। लेकिन पाकिस्तान की मंशा तो कुछ और ही थी। उसने बीटिंग रिट्रीट समारोह किया।
इधर, भारतीय सीमा की ओर सैकड़ों लोग डटे हुए थे। हाथों में तिरंगे थे और नारेबाजी का जोर था। हर भारतवासी अभिनंदन की एक झलक को बेताब था, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आए। ऐसा लगा कि पाकिस्तान एक किस्म का खेल खेल रहा है। वह भारत के सब्र की परीक्षा ले रहा था। तमाम अधिकारी और अभिनंदन के माता-पिता जहां उनका इंतजार कर रहे थे, वहीं औपचारिकताओं के नाम पर पाकिस्तान की ओर से लगातार देरी होती रही।
दरियादिली का बात करने वाला पाकिस्तान हर लम्हे के साथ भारत के घाव पर नमक ही रगड़ रहा था। सुबह खबर आई थी कि अभिनंदन दोपहर 2 बजे तक वाघा बॉर्डर पहुंच जाएंगे और भारत के सुपुर्द होंगे। लेकिन, लगातार हीलाहवाली के बाद आखिर रात 9 बजे अभिनंदन को वाघा बॉर्डर लाया गया। कागजी औपचारिता के नाम पर प्रक्रिया लंबी खींची गई। पाकिस्तान बार-बार वक्त बदलता रहा। इस काम को बेहद संयमित तरीके से अंजाम दिया जा सकता था। लेकिन पाकिस्तान किसी काम को सरल अंदाज में कर दे ऐसा कैसे हो सकता है।