दया देवी हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुडक़र बनी स्वावलंबी

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करनाल  जिले के गांव भादसों निवास दया देवी पत्नी सुरेन्द्र सिंह हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुडक़र न के वल स्वावलंबी बनी बल्कि परिवार के आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में भरपूर सहयोग दे रही है। सरकार की योजना का लाभ उठाकर दया देवी दूसरी ग्रामीण महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत बन गई है। दया देवी अपने पति, सास-ससुर और 2 बच्चों के साथ भादसों गाँव में रहती है।
दया के पति चीनी मिल में काम करते थे जिससे उनको 8000 महीना वेतन मिलता था, परन्तु ये नौकरी साल के 8 महीने ही रहती थी बाकि 4 महीने आय का कोई साधन नहीं था । डेढ एकड़ जमीन भी है जिस पर उसके ससुर खेती करते हैं जिससे उनको केवल साल भर के अनाज का लाभ मिल पाता था। दया जनवरी 2015 में सरस्वती महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ी थी । समूह से जुडऩे के बाद उसने पहला ऋण 6000 रुपये का लिया था ।
जिसको उसने राशन लाने व बच्चों की स्कूल फीस देने के लिए इस्तेमाल किया। दया दसवीं तक पढ़ी थी, पर उसकी समझ काफी अच्छी होने कारण उसे गाँव के समूहों में समूह सखी के तौर पर काम मिल गया। घर की मरम्मत के लिए जरुरत पडऩे पर उसने समूह से 19000 रुपये का ऋण और लिया। फिर जब समूह को लोन की दूसरी किश्त मिली तो उसमे से एक लाख रुपये लेकर अपने पति को सबमर्सिबल मोटर की दुकान करवा दी ।
अब दया को खुद भी समूह – सखी का मानदेय मिलता है। वह परियोजना के अन्य कार्यों में भी हिस्सा लेती है, अपनी आमदनी व बचत बढऩे से दया ने एक गाय व भैंस भी ली जिसका पालन-पोषण उसकी सास करती है । इससे उनको एक आजीविका का साधन और मिला है।
पशुपालन, स्वयं के कार्यों से व पति का स्थाई काम होने के कारण अब दया के परिवार की आमदनी महीने में 20000 तक हो जाती है। समूह में जुडऩे के बाद दया घर से बाहर निकल कर काम करने लगी और अब गाँव में सभी उसको जानने लगे हैं अन्यथा उसको अपने पड़ोस में रहने वाली महिलाओं तक का नहीं पता था। सभी समूहों की बहनें अपनी समस्याओं के समाधान के लिए दया के पास आती हैं।
उसके अन्दर बोलने की हिम्मत आई है, अब वो किसी अधिकारी या मौजिज व्यक्ति के सामने अपनी बात कहने में डरती नहीं है। दया पूरी कोशिश करती है अपने गाँव की सभी बहन को साथ लेकर चलने की और अपने गाँव के विकास की।

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